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India Against Corruption - A Jan Lokpal Bill has been designed which has strong measures to bring all corrupt people to book. Join the cause and fight to force politicians to implement this powerful bill as an act in the parliament.

Saturday, June 21, 2008

मनमोहन जी द्बारा मुद्रास्फीति का नया रिकार्ड

पिछली बार जब मनमोहन जी ने मुद्रास्फीति की दर का रिकार्ड बनाया था तब वह वित्त मंत्री थे। इस बार वह प्रधान मंत्री हें। आज की ख़बरों के अनुसार मुद्रास्फीति की दर ११.०५ प्रतिशत हो गई है। लगता है उन का और मुद्रास्फीति का कोई अटूट रिश्ता है।

पिछली बार यह कारनामा कांग्रेस सरकार के आखिरी साल में हुआ था, और चुनाव में सरकार हार गई थी। इस बार भी यह कारनामा सरकार के आखिरी साल में हुआ है। क्या इस बार भी कांग्रेस चुनाव हारेगी? मेरे विचार में हारना चाहिए। आग लगा दी है इस मंहगाई ने। मेरे जैसे पेंशन याफ्ता लोग क्या करें? कल जो सब्जी १६ रूपया किलो थी आज वह २० रुपया किलो है। एक न टूटने वाला चक्कर बन गया है। पहले बाज़ार में कीमतें बढ़ती हें। फ़िर उस से मंहगाई बढ़ती है। अखबार में बढ़ती मंहगाई की ख़बर से दुकानदार कीमतें और बढ़ा देते हें। कोंई कंट्रोल नहीं है इस सरकार का मंहगाई पर। सिवाय प्रदेश सरकारों को दोष देने के यह सरकार कुछ नहीं कर सकती। आम आदमी की सरकार आम आदमियों को निगल रही है।

एक भी तो कायदे का काम नहीं कर पाई यह सरकार। सारा समय मनमोहन जी अल्पसंख्यकवाद का राग अलापते रहे। इस सरकार के सारे फैसलों ने मंहगाई को ही बढ़ाया। वोट के चक्कर में जनता का पैसा इधर-उधर की तुष्टिकरण की योजनाओं में बरबाद करती रही यह सरकार। और तकलीफ की बात यह है की जिनके लिए यह किया गया उन्हें कोंई फायदा नहीं पहुँचा।

एक वरिष्ट नागरिक के दिल के दर्द है यह।

Thursday, June 19, 2008

अरे भाई इन्हें सजा क्यों नहीं देते?

एक ख़बर के अनुसार, दिल्ली जल बोर्ड ने चितरंजन पार्क के 'जी' ब्लाक में सड़क पर एक बहुत बड़ा गड्ढा खोदा. गड्ढा इतना बड़ा है कि लोगों के घर के दरवाजे तक पहुँच रहा है. जितनी तेजी से उन्होंने यह गड्ढा खोदा उस से ज्यादा तेजी से वह गड्ढे को ऐसा ही छोड़कर भाग गए. अब बारिश का मौसम समाप्त होने तक यह गड्ढा ऐसा ही रहेगा.

जो हुआ उस में कोई आश्चर्य की बात नहीं हैं. दिल्ली की सिविक एजेंसीज इस सब के लिए हमेशा से मशहूर हैं. सच पूछिए तो पूरी दिल्ली सरकार ही गड्ढे खोद रही है और खुदवा रही है. दिल्ली में कहीं भी चले जाइए आपको गड्ढे ही गड्ढे नजर आयेंगे (मनमोहन जी की हरी-भरी, साफ़-सुथरी और अति सुंदर दिल्ली को छोड़कर).

चितरंजन पार्क के निवासी हर समय खतरे में हैं. किसी भी समय कोई भी गड्ढे में गिर सकता है. गड्ढे के चारों तरफ़ कोई बाढ़ नहीं हैं, न कोई खतरे से आगाह करने का कोई बोर्ड है. खुले पानी के पाइप्स, विजली और फोन के तार, कोई भी कभी भी उलझ कर गिर सकता है. पर किसे चिंता है? मनमोहन, शीला और जल बोर्ड के चीफ और अधिकारिओं के घर के आस पास गड्ढे नहीं खोदे जाते. अगर कोई गिरेगा तो कोई आम आदमी गिरेगा और आम आदमी की चिंता किसे है?

क्या यह संब अपराध नहीं है? इन लोगों को सजा क्यों नहीं दी जाती? क्या कानून सरकार और सरकारी बाबुओं के लिए नहीं है? दिल्ली जलबोर्ड वालों, डूब मरो शर्म से इस गड्ढे में.

Saturday, June 14, 2008

महंगाई का कोल्हू

लगता है मनमोहन को महंगाई बहुत मनमोहक लगती है.अर्थ का शास्त्र पढ़ा है न उन्होंने, इसलिए आम आदमी का तेल निकाल रहे हैं महंगाई के कोल्हू में. शायद यह भी सोच रहे हैं कि इस से तेल की कमी भी पूरी हो जायेगी.
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"जनता को सताने में बहुत मजा (sadistic pleasure) आता है डीडीऐ को", दिल्ली हाई कोर्ट.
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उनका चेक बाउंस हो गया, उन पर मुकदमा चला, वह अदालत में हाजिर नहीं हुए, अदालत ने कई सम्मन भेजे. पर वह फ़िर भी हाजिर नहीं हुए. अदालत ने दिल्ली पुलिस को खूब फटकारा और गैर-जमानती वारंट इशू कर दिया. पुलिस उनके घर आई उन्हें गिरफ्तार करने. अब उनका शव मुर्दाघर में है.
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"मेरे घर वाली गली में एक महीने से झाड़ू नहीं लगी",
"पिछले महीने हमारी नाली साफ हुई थी पर कीचड़ अभी भी हमारे दरवाजे पर पड़ी है:,
ऐसी सैकड़ों शिकायतें दिल्ली नगर निगम के पार्षद के पास आती हैं.
पार्षद जी ने बताया कि कोई सफाई कर्मचारी काम नहीं करता. उनके पीछे पड़ कर एक-एक शिकायत दूर करानी पड़ती है. सारा समय इसी में निकल जाता है.
हमने कहा, कहा, "फ़िर विकास का काम कब होगा?".
उन्होंने कहा, "अरे झाड़ू मारिये विकास को. अगर मैंने यह झाड़ू नहीं लगवाई तो अगले चुनाव में मेरे को झाड़ू लगा देंगे यह लोग".
हम पहुंचे सफाई कर्मचारियों के पास. उन्होंने कहा, "साहब, अगर सारा काम अपने आप हो जाए तो कोई तारीफ़ नहीं करता. अब शिकायत करेंगे तो देर सबेर काम हो ही जायेगा. जमता खुश होगी कि उसकी शिकायत पर कार्यवाही हुई. हमें भी कुछ चाय पानी का पैसा मिलेगा. पार्षद जी भी खुश होंगे और जनता से कह सकेंगे कि देखिये हम ने आप की शिकायतों पर कार्यवाही करवाई. उन्हें भी तो चुनाव जीतना है अगली बार".
हमने पूछा, "बाकी समय क्या करते हैं आप?".
उन्होंने कहा, "ताश खेलते हैं और गुर्जर आन्दोलन पर बहस करते हैं".
हम चुप रहे.
वह मुस्कुराए, "अरे जाने दीजिये न, सब खुश हैं. आप क्यों परेशान होते हैं? आप अपने घर का नंबर बताइये, वहाँ सफाई ठीक से करवा देंगे. आपको पार्षद जी को शिकायत करने की जरूरत नहीं पड़ेगी".
हम वापस आने के लिए मुड़े.
तभी उन्होंने कहा. "साहब आप तो पढ़े-लिखे हैं. यह वसुंधरा सरकार आने वाले चुनाव में जीत पायेगी क्या? या गुर्जर इस सरकार को खा जायेंगे?".
हम मुस्कुरा दिए. एक खुशी भी हुई मन में. देखो हमारे सफाई कर्मचारी भी कितने सजग हैं प्रजातंत्र के लिए!