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India Against Corruption - A Jan Lokpal Bill has been designed which has strong measures to bring all corrupt people to book. Join the cause and fight to force politicians to implement this powerful bill as an act in the parliament.

Tuesday, August 31, 2010

क्या भारत सरकार एक अच्छी सेवा प्रदाता है?

मैं नहीं जानता कि आप का उत्तर क्या होगा. मेरा उत्तर है - भारत सरकार एक अच्छी सेवा प्रदाता नहीं है. आप कोई भी सेवा ले लीजिये, रेल, बस, पानी, विजली, कर संग्रह, नगर निगम, सुरक्षा, न्याय, फोन, आप का अनुभव सुखद नहीं होगा. हर समय आप को यही महसूस होगा कि आप की परेशानी सुनने और उसे दूर करने की किसी को कोई चिंता नहीं है. बल्कि आप को ऐसा लगेगा कि आप को अनावश्यक तंग किया जा रहा है. नियम इस तरह बनाए जाते हैं कि सरकारी बाबू आप को बड़ी आसानी से उलझा देगा और आप की मानसिक शांति छीन लेगा. नियमों के सरलीकरण की बातें तो की जाती हैं पर कहीं न कहीं कोई ऐसा ऐसा प्रावधान घुसा दिया जाता है कि नियम और कठिन हो जाता जाता है.

मैं कल सेवा कर (सर्विस टेक्स) के नेहरु प्लेस स्थित कार्यालय में गया. इस कार्यालय से सरकार को करोड़ों रूपए का राजस्व मिलता है, पर लगता है सरकार उसका नगण्य प्रतिशत ही कार्यालय के रख-रखाब पर खर्च करती है. एक 'सहायता केंद्र' है जहाँ आगंतुकों के लिए दो टूटी हुई कुर्सियां रखी हैं. पीने का पानी तो है पर पीने के लिए ग्लास नहीं हैं. इस केंद्र पर कोई कर्मचारी उपलब्ध नहीं था. आगंतुक एक दूसरे से और चपरासी से पूछ रहे थे कि यह श्रीमान कब आयेंगे? सफाई के बारे में अगर आप पूछें तब उसे निम्न स्तर का ही कहा जा सकता है.

मैं एक अधिकारी के कमरे मैं गया तब वहां भी दो टूटी कुर्सियों का सामना हुआ. जब बैठने लगा तब अधिकारी ने कहा, 'जरा ध्यान से, कुर्सी टूटी है, चोट न लग जाए'. वह खुद भी जिस कुर्सी पर बैठे थे, उनके पद के अनुरूप नहीं थी. ऐसा बिलकुल नहीं लग रहा था कि यह एक ऐसे अधिकारी का कमरा है जो सरकार के लिए कर संग्रह करता है. उनके कमरे के बाहर जो हाल था उस का हाल भी कोई अच्छा नहीं था.

यह कैसी सरकार है जो न तो अपने ग्राहकों को सही आदर देती है और न ही अपने कर्मचारियों को? क्या कार्यालय प्रमुख का कमरा अच्छी तरह सजा कर सरकार के कर्तव्य की इतिश्री हो जाती है? क्या दूसरे अधिकारियों और कर्मचारियों के प्रति सरकार का कोई दायित्व नहीं है? ऐसे गंदे और दम-घुटाऊ वातावरण में कोई कैसे कुशलता-पूर्वक कार्य कर सकता है?

मैं तो वहां कुछ समय के लिए गया था और मुझे अच्छा नहीं लगा. जो लोग वहां दिन भर रह कर काम करते हैं उनकी हालत सोच कर मैं घबराता हूँ.

Sunday, August 29, 2010

ग्राहक बनो होशियार

एक अच्छा विज्ञापन दिया है भारतीय डाक (इंडिया पोस्ट) ने. जब भी कोई उत्पाद या सेवा खरीदें, रसीद लेना अपनी आदत बना लीजिये. अगर आप उत्पाद या सेवा से असंतुष्ट हैं और ग्राहक अदालत में शिकायत करना चाहते हैं तब आप को रसीद की आवश्यकता होगी.

अगर उत्पाद या सेवा विक्रेता आप से कोई टेक्स ले रहा है तब रसीद लेने से यह सुनिश्चित हो जाएगा कि टेक्स सरकारी खजाने में जमा कर दिया जायेगा. एक जिम्मेदार ग्राहक और नागरिक दोनों के नाते यह आप का कर्तव्य है.

Saturday, August 28, 2010

Sub-standard ISI Marked Products

Bureau of Indian Standards (BIS) operates a third-party product certification scheme under which it grants licenses to product manufacturers to use ISI Mark on their products. ISI mark on a iproduct means that the product conforms to the relevant Indian Standard. For the benefit of consumers, BIS issues advertisements in the media. One such advertisement issued by BIS is shown in the image. CLICK to read it.

In this advertisement, BIS has used a term 'sub-standard' but has not defined it. Does it mean that any product not having this mark is 'sub-standard', or a product having this mark can also be 'sub-standard'? I wrote an e-mail to BIS bit BIS did not reply. I sent three reminders but still no reply. Is BIS really concerned about the interest and safety of consumers., or issuing this advertisement is only a formality to indicate so in its annual report or satisfying consumer NGOs?

To read my e-mail, CLICK here.

I am now filing a RTI application to get the information. I will share it on this blog as soon as I get it.

मोबाईल सेवा प्रदाताओं द्वारा ग्राहकों पर अत्याचार कब ख़त्म होगा?

कितने वर्ष हो गए मोबाईल सेवा ग्राहक उस घंटी से परेशान हैं जो कभी भी बज उठती है, जो न रात देखती है न दिन, जिसे इस बात की कोई परवाह नहीं कि हो सकता है आप किसी जरूरी काम में व्यस्त हों. अब तो ऐसी बिना-बुलाई घंटी बजाने वाले आप से कारण भी पूछने लगे हैं कि आप उन के द्वारा बेचे जाने वाले उत्पाद या सेवा को न खरीदने का दुस्साहस कैसे कर रहे हैं.

सरकार और अदालतें भारतीय ग्राहकों की इन आक्रान्ताओं से रक्षा नहीं कर पा रही हैं. आज फिर एक खबर निकली है अखवार में. साथ के चित्र पर क्लिक करें.

क्या कभी इस देश में ऐसा समय आएगा जब भारतीय ग्राहक इस अत्याचार से मुक्त हो सकेगा?

दिल्ली के हैरान-परेशान नागरिक

साझा (काला) धन खेलों के आयोजन के नाम पर दिल्ली की जनता को जिस प्रकार हैरान-परेशान किया जा रहा है वह दिल्ली सरकार के लिए अत्यंत शर्म की बात है. दिल्ली के कुछ इलाकों को देख कर तो ऐसा लगता है जैसे वहां हवाई हमला हुआ हो. यह और बात है की दिल्ली सरकार और काला धन खेल आयोजन समिति के मालिक शर्मसार होने के बजाय गर्व अनुभव कर रहे हैं. जनता के हजारों करोड़ रूपए जिस बेदर्दी से खर्च किये गए हैं और इन लोगों की जेब में गए हैं, वह राष्ट्र और जनता के प्रति एक भयंकर अपराध है. लेकिन उन्हें इस अपराध की सजा नहीं मिलेगी. खेलों के बाद सब रफा-दफा कर दिया जाएगा और इन बेईमानों को पुरुस्कार पदक दे दिए जायेंगे.

संलग्न चित्र पर आप क्लिक करें तो पायेंगे कि अब दिल्ली की मुख्य मंत्री कह रही हैं कि इन्द्र देवता उनसे नाराज हैं. यथार्थ तो यह है कि इंद्र देवता उनसे बहुत खुश हैं. दिल्ली में वारिश करा कर उन्होंने मुख्य मंत्री को एक और बहाना बनाने का मौका दे दिया है. दिल्ली के नागरिक इन 'बहाना मुख्य मंत्री' द्वारा इतने प्रताड़ित किये गए हैं कि अब किसी और किसी प्रताड़ना का कुछ असर नहीं होता. बेबस वह बस इस का इन्तजार कर रहे हैं कि कब इस प्रताड़ना का अंत होगा.

Thursday, August 26, 2010

How genuine are Dettol and Lizol advertisements?

Times of India has published a news that Indian Medical Association (IMA) has decided that it will not endorse any product as that would be against the Medical Council of India (MCI) regulations. Click on the image to read the news.

Reading this news, I was reminded of advertisements of Dettol and Lizol which claim that their products are recommended by IMA. They also print logo of IMA on the product. Dettol website also makes this claim. CLICK to see.

It is not only that these IMA is violating MCI regulations by endorsing these products, it does not have any system/procedures under which it can do Third-Party Certification (TPC). In last two years, I have tried to find out if IMA has any system/procedure for TPC but it did provide me any information.

On August 13, 2007, I have written a post on this blog:

Dettol ad - it needs verification

Dettol is advertising on TV that their product is certified by Indian Medical Association (IMA) . But if you visit IMA website, you will not find any details of any third-party product certification scheme. As per information available with me, there is only BIS who operates third-party product certification scheme, under which they allow manufacturers to put ISI mark on their products. BIS officers regularly visit factories of their licensees, check records (kept as per BIS Scheme of Testing & Inspection), test samples in the factory and draw samples for testing in an independent laboratory. in addition to this, BIS officers also purchase samples from the market and get them tested in an independent laboratory.
I don't think that IMA has such infrastructure and expertise to run a third-party product certification scheme. This ad inserted by Dettol certainly need verification.

CLICK to read the post.

ग्राहक शिकायत क्यों करते हैं?

क्या आप ने कभी ऐसा ग्राहक देखा है जो कहता हो, 'शिकायत करना मेरा शौक है'? शिकायत करना और उसे उस के सही अंजाम तक ले जाना एक बहुत मुश्किल काम है, जिस में पैसा, समय और ऊर्जा सब बरबाद होते हैं. बहुत कम प्रतिशत है ऐसी शिकायतों का जिन के परिणाम से ग्राहक पूरी तरह संतुष्ट हो. अक्सर ग्राहक शिकायतों को बीच में ही छोड़ देते हैं. मेरा एक मित्र कहता है कि अगर आप को किसी से दुश्मनी निकालनी हो तब उस से किसी उत्पाद-सेवा विक्रेता की शिकायत करवा दीजिये, और फिर उसे शिकायत के भंवर में छटपटाता हुआ देख कर खुश होते रहिये.

आप को ऐसे बहुत से लोग मिल जायेंगे जो आप की परेशानी में तुरंत आप को यह सलाह दे देंगे कि शिकायत कर दो. यह वह लोग होते हैं जिन्होनें या तो कभी शिकायत की ही नहीं होती या जिन्होनें शिकायत तो की थी पर उस के बाद कभी शिकायत न करने की प्रतिज्ञा भी कर ली थी. भारत में शिकायतकर्ता को पसंद नहीं किया जाता. एक छोटे से उत्पाद-सेवा विक्रेता से ले कर प्रधानमंत्री कार्यालय या राष्ट्रपति सचिवालय तक सब शिकायतकर्ता को शिकायती नजरों से देखते हैं. उनका वश चले तो शिकायत करना एक अपराध घोषित कर दें.

ग्राहक जब सब तरफ से निराश हो जाता है तब शिकायत करता है. अगर उस की शिकायत को पहले स्तर पर ही निपटा दिया जाय तब उसे ग्राहक अदालतों तक जाने की जरूरत ही न पड़े. लेकिन असंतुष्ट ग्राहक की बात ही कोई सुनना नहीं चाहता. उस के हर तर्क को नकार दिया जाता है. जब वह अदालत में पहुँचता है तब उस के खिलाफ वकील खड़े कर दिए जाते हैं. असंतुष्ट ग्राहक को सौ रूपए का मुआवजा नहीं देंगे पर वकीलों को हजारों रूपए दे देंगे. मेरा मानना है कि उत्पाद-सेवा विक्रेता अपने नकारात्मक व्यवहार से ग्राहक को शिकायत करने के लिए मजबूर कर देते हैं.

Sunday, August 22, 2010

How to file a complaint in consumer court?

You have been duped, ignored, insulted or cheated while buying a product. You want to file a complaint in the consumer court. Well, that is your right granted to you under Consumer Protection Act. But the decision to file the complaint should not be a emotional decision and you should not have high expectations from consumer courts. Whatever the Govt. claims, the legal system in India is not complainant friendly and this includes consumer courts also. So, keep your emotions aside and be rational while preparing to file the complaint and in legal battle ahead.

I am giving you a link where you can learn about how to file complaint in consumer court. Study it carefully and make notes, if required.

CLICK.

Consumer v/s Customer

Normally people will use terms 'Consumer' and 'Customer' in the same sense but under Consumer Protection Act both these terms have different meanings. A consumer is protected under this Act but not the customer. In a general sense, if you buy a product for any commercial purposes you are not a consumer, but if you buy the product purely for your own consumption, you are a consumer.

You can visit the following page on www.consumerdaddy.com for a very interesting article on this subject - CLICK.

On this page you will also find a quiz where you can test your understanding of these two terms.

Not providing information under RTI Act is deficiency in service under CPA

There is good news for those information seekers under RTI Act, who inspite of their best efforts and intentions are not provided information by CPIO. The issue whether failure to furnish information without valid reason constitutes a deficiency in service for which compensation can be sought by filing a consumer complaint has been decided by the National Consumer Commission in a trendsetting judgment.


To read the details CLICK.


An applicant under the RTI Act has to pay fees for getting the information, and hence he acquires the status of a consumer. If there is any deficiency in service in respect of providing such information, a complaint could be filed under the CPA for claiming compensation. This landmark and historic judgment is a new milestone, both for RTI as well as consumer activists, for holding the authorities accountable to the citizen.