पिछले दिनों मुझे ताज एक्सप्रेस से आगरा जाने का अवसर मिला। मेरे पास में गुजरात के एक सज्जन बैठे थे जो अपने परिवार के साथ ताजमहल देखने जा रहे थे। बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि वह वर्ष १९७५ में ताजमहल देखने आए थे और इसी ताज एक्सप्रेस में यात्रा की थी। उनकी बेटी अमरीका में रहती है और आजकल भारत आई हुई है। उसके बच्चे ताजमहल देखना चाहते हैं। आज वह उन्हें ताजमहल दिखाने ले जा रहे हैं। पिछली बार ताज एक्सप्रेस में उन्हें बहुत मजा आया था, इसलिए उन्होंने इस ट्रेन से ही आरक्षण करवाया। पर आज यह ट्रेन देख कर उन्हें बहुत निराशा हुई। ताजमहल के नाम पर जिस ट्रेन का नाम रखा गया हो, उस ट्रेन की ऐसी दयनीय स्थिति, कितनी शर्म की बात है। रेल मंत्री लालू प्रसाद की सारी दुनिया में तारीफ़ हो रही है कि उन्होंने भारतीय रेल को फायदे में ला दिया। ताज एक्सप्रेस को इतना गन्दा और घटिया करके यह जनाब हार पहनते फ़िर रहे हैं, शर्म आनी चाहिए इन्हें। यह सब सुन कर मैंने सोचा, लालू तुम्हारी रेल हो गई फेल।
कुछ देर बाद, उनकी बेटी के दोनों बच्चे उनके पास आए और बोले, 'नाना हम आपसे नाराज हैं। इतनी गन्दी ट्रेन है यह, और आप इस की तारीफ़ कर रहे थे। क्या ताज महल भी ऐसा ही होगा?' वह बेचारे चुप रहे। मैंने कहा, 'नहीं बच्चों ताज महल तो बहुत खूबसूरत है, तुम लोग देखोगे तो बहुत खुश हो जाओगे'। उन्होंने मेरी तरफ़ अविश्वास से देखा और अपनी सीट पर चले गए। मैंने मन में सोचा, ताजमहल तो बाकई बहुत सुंदर है और शायद इसलिए कि लालू ताजमहल को गन्दा नहीं कर पाये हैं।
जिन लालू की हर तरफ़ तारीफ़ होती है उन लालू की रेल को दो बच्चों ने कर दिया फेल।
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Saturday, August 30, 2008
Sunday, August 24, 2008
दिल्ली के नागरिक आख़िर करें क्या?
मनमोहन जी का कहना है कि दिल्ली से ज्यादा हरा-भरा, साफ़-सुथरा और खूबसूरत शहर भारत में दूसरा नहीं है। मेरी राय इस बारे में बिल्कुल उलट है। में एक भुक्त भोगी हूँ और मनमोहन जी ने तो कभी कुछ भोगा ही नहीं। वह भारत के प्रधान मंत्री हें, इस लिए उनके बयान अखबारों में छपते हें। मैं एक आम नागरिक हूँ इस लिए मेरी कोई राय अखबार में नहीं छपती। भला हो ब्लाग्स का, कम से कम अपने ब्लाग पर तो अपनी बात कह लेता हूँ।
इस बार बात कुछ इतनी ज्यादा बिगड़ गई कि अखबार वालों को दिल्ली की सड़कों के ख़िलाफ़ मुहिम चलाना पड़ा। दिल्ली की सड़कों से ज्यादा ख़राब सड़कें शायद भारत में कहीं और नहीं होंगी। अगर यकीन न हो तो यह तस्वीर देखिये जो कुछ दिन पहले अखबार में छपी थी.
इस बार बात कुछ इतनी ज्यादा बिगड़ गई कि अखबार वालों को दिल्ली की सड़कों के ख़िलाफ़ मुहिम चलाना पड़ा। दिल्ली की सड़कों से ज्यादा ख़राब सड़कें शायद भारत में कहीं और नहीं होंगी। अगर यकीन न हो तो यह तस्वीर देखिये जो कुछ दिन पहले अखबार में छपी थी.
Thursday, August 07, 2008
रेल में मौत के लिए कौन जिम्मेदार?
एक रेल के डिब्बों में आग लग गई और बहुत से निर्दोष नागरिक मारे गए. कौन जिम्मेदार है इसके लिए? दिल्ली के उपहार सिनेमा में लगी आग पर अदालत ने जो निर्णय दिया है, उसके अनुसार रेल मंत्री लालू प्रसाद दोषी हैं. उन पर उपहार के मालिकों की तरह मुकदमा चलना चाहिए.
यह रेल दुर्घटना दोनों टाली जा सकती थी. यात्रियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कंपनियां आज कल अन्तर-राष्ट्रिय मानकों के अनुसार मेनेजमेंट सिस्टम्स लगाती हैं. रेल मंत्रालय को यह सिस्टम्स अपने यहाँ लगाने आवश्यक थे,पर उन्होंने नहीं लगाए. इन सिस्टम्स को लगाने का निर्णय कंपनी के प्रमुख द्बारा लिया जाता है. रेल कम्पनी के प्रमुख लालू प्रसाद हैं. इस सिस्टम में, रेल यात्रा के दौरान जितनी भी संभावित रिस्क हो सकती हैं उनका आंकलन किया जाता है और फ़िर उन्हें दूर करने के उपाय किए जाते हैं. इस मानक का नंबर है OHSAS 18001.
लालू प्रसाद ने अगर अपनी रेल में यदि यह सिस्टम लगाया गया होता तो रेल स्टाफ और यात्रियों को इस की पूरी जानकारी दी गई होती और उन्हें किसी भी इमरजेंसी में कैसे और क्या करना है इस के लिए भी ट्रेनिंग दी गई होती. पूरी सम्भावना थी कि इस के कारण यह दुर्घटना होने से बच जाती, और बच जाती नागरिकों की जान और राष्ट्र की संपत्ति.
रेल मंत्रालय / रेल मंत्री ने अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं की और इतने निर्दोष यात्रिओं की जान गई. अब इन्हें कोई सजा दे पायेगा इस में तो पूरा संदेह है. सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि सरकार और बाबुओं को तो अब भगवान् भी ठीक नहीं कर सकते.
यह रेल दुर्घटना दोनों टाली जा सकती थी. यात्रियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कंपनियां आज कल अन्तर-राष्ट्रिय मानकों के अनुसार मेनेजमेंट सिस्टम्स लगाती हैं. रेल मंत्रालय को यह सिस्टम्स अपने यहाँ लगाने आवश्यक थे,पर उन्होंने नहीं लगाए. इन सिस्टम्स को लगाने का निर्णय कंपनी के प्रमुख द्बारा लिया जाता है. रेल कम्पनी के प्रमुख लालू प्रसाद हैं. इस सिस्टम में, रेल यात्रा के दौरान जितनी भी संभावित रिस्क हो सकती हैं उनका आंकलन किया जाता है और फ़िर उन्हें दूर करने के उपाय किए जाते हैं. इस मानक का नंबर है OHSAS 18001.
लालू प्रसाद ने अगर अपनी रेल में यदि यह सिस्टम लगाया गया होता तो रेल स्टाफ और यात्रियों को इस की पूरी जानकारी दी गई होती और उन्हें किसी भी इमरजेंसी में कैसे और क्या करना है इस के लिए भी ट्रेनिंग दी गई होती. पूरी सम्भावना थी कि इस के कारण यह दुर्घटना होने से बच जाती, और बच जाती नागरिकों की जान और राष्ट्र की संपत्ति.
रेल मंत्रालय / रेल मंत्री ने अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं की और इतने निर्दोष यात्रिओं की जान गई. अब इन्हें कोई सजा दे पायेगा इस में तो पूरा संदेह है. सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि सरकार और बाबुओं को तो अब भगवान् भी ठीक नहीं कर सकते.
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Monday, August 04, 2008
गैस सिलिंडर छीनने की धमकी
कल अखबार में पढ़ा कि जिन घरों में गैस पाईपलाइन से गैस मिलेगी उन्हें गैस सिलिंडर कनेक्शन वापिस लौटाने होंगे. यह तो फ़िर परेशानी की बात हो गई. सिलिंडर की काला बाजारी ने हमें हमेशा परेशान किया. सिलिंडर मिलने में हमेशा देर होती रही है. डबल सिलिंडर का एक गैस कनेक्शन है हमारे पास. परिवार बड़ा हो गया है. गैस की खपत बढ़ गई है. अक्सर २१ दिन नहीं चल पाता सिलिंडर. बहुत परेशानी होती है.
जब हमारे अपार्टमेंट्स में पाइप से गैस मिलने की बात हुई तो हमने तुंरत रजिस्टर करा लिया. सोचा चलो यह परेशानी अब ख़त्म हो जायेगी. पर अभी गैस मिलनी शुरू नहीं हुई कि यह धमकी दे डाली सरकार ने. लगता है यह सरकार ईमानदार नागरिकों को चैन से न रहने देने की कसम उठा चुकी है. हम सोच रहे थे कि जब कभी पाइप की गैस में कोई दिक्कत होगी तो एक रिजर्व में रखा सिलिंडर काम आएगा. पर अगर दोनों सिलिंडर वापिस करने पड़े तो परेशानी फ़िर बैसी की बैसी रही.
जो लोग गैस ब्लेक में ले लेते हैं, जिन्होनें झूट बोल कर एक से ज्यादा कनेक्शन ले रखे हैं, उन्हें न पहले कोई परेशानी थी और न अब होगी. परेशान होंगे तो केवल हम जैसे ईमानदार शहरी. सरकार भी उन्हीं के साथ है. बेईमान-बेईमान भाई-भाई. जो सरकार ख़ुद ही बेईमानी से विश्वासमत जीतती है उस से क्या उम्मीद की जा सकती है कि वह ईमानदार नागरिकों की चिंता करेगी?
जब हमारे अपार्टमेंट्स में पाइप से गैस मिलने की बात हुई तो हमने तुंरत रजिस्टर करा लिया. सोचा चलो यह परेशानी अब ख़त्म हो जायेगी. पर अभी गैस मिलनी शुरू नहीं हुई कि यह धमकी दे डाली सरकार ने. लगता है यह सरकार ईमानदार नागरिकों को चैन से न रहने देने की कसम उठा चुकी है. हम सोच रहे थे कि जब कभी पाइप की गैस में कोई दिक्कत होगी तो एक रिजर्व में रखा सिलिंडर काम आएगा. पर अगर दोनों सिलिंडर वापिस करने पड़े तो परेशानी फ़िर बैसी की बैसी रही.
जो लोग गैस ब्लेक में ले लेते हैं, जिन्होनें झूट बोल कर एक से ज्यादा कनेक्शन ले रखे हैं, उन्हें न पहले कोई परेशानी थी और न अब होगी. परेशान होंगे तो केवल हम जैसे ईमानदार शहरी. सरकार भी उन्हीं के साथ है. बेईमान-बेईमान भाई-भाई. जो सरकार ख़ुद ही बेईमानी से विश्वासमत जीतती है उस से क्या उम्मीद की जा सकती है कि वह ईमानदार नागरिकों की चिंता करेगी?
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