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India Against Corruption - A Jan Lokpal Bill has been designed which has strong measures to bring all corrupt people to book. Join the cause and fight to force politicians to implement this powerful bill as an act in the parliament.

Friday, October 16, 2009

President's Secretriat Helpline - No real help to consumer

There are many helplines to help aam aadmi, but poor aam aadmi never gets any help. When President's Secretariat started a helpline I registered a grievance on 28th July 2009 about RTI Act. Whenever I checked the status, it said that a letter/e-mail will be sent to me separately. The letter/e-mail never arrived. I registered a reminder grievance on 06th October 2009. Today I checked the status. It says my grievance is under examination.

On 29th July 2009, I registered another grievance about pathetic condition of DDA District Park in Paschim Puri. As per the status shown on helpline website, my petition was transferred on 18th August 2009 to Shri Rakesh Mohan, Principal Secretary (AR), Delhi Sectt. I did not hear anything from PS (AR). I sent an e-mail to PS (AR) which was not replied. I phoned his office and was told that Shri Rakesh Mohan is not PS (AR). With being directed from one phone number to another, I finally got in touch with a Section Officer where I was informed that President's Sectt has wrongly transferred the petition to Delhi Sectt as DDA is not under Delhi Govt. He gave me address of some website where these details are posted, but that website never opened. I returned to President's Secretariat Helpline. There is a link - Click here to view the live status of this case. I have clicked on it on different days but it never opens. Frustrated I registered a reminder grievance on 06th October 2009. Today I checked the status. It says my grievance is under examination.

It is no use. Poor aam aadmi can not do any thing. They only shout to help aam aadmi, but aam aadmi never gets any help.

Saturday, October 10, 2009

भारतीय रेलों में मिलने वाली चाय कैसे बनती है?




काफी समय पहले मैंने इस ब्लाग पर एक पोस्ट लिखी थी - भारतीय रेलों में मिलने वाला खाना कितना सेफ है?. आज मुझे एक ई-मेल मिली जिसमें रेल यात्रियों को रेल में मिलने वाली चाय से सावधान किया गया है. आप भी पढें इस मेल को.

Think Before Drinking tea while travelling by indian Railway (IR)

1.Caterers use toilet water for making tea.
2.The tea is made in a special zone near toilet meant for Catering Service staff.
3.Bath heater with Scaling (white layer) is used for making tea.

These snaps were taken by a friend while travelling in kokan railway (Janshatabadi Exp.)

Next Time, don't say, "IF ONLY I KNEW BEFORE HAND!"

जनता के पैसे का अपराधिक दुरूपयोग

कुछ समय पहले मैंने अपने ब्लॉग काव्य कुञ्ज पर एक पोस्ट लिखी थी - मीठा-मीठा मैं, कड़वा-कड़वा तू. इस पोस्ट में मैंने लिखा था कि दिल्ली में जो कुछ अच्छा होता है उस का श्रेय शीला दीक्षित ले लेती हैं. अखवारों में शीला जी की तस्वीर के साथ एक विज्ञापन छप जाता है. जो बुरा होता है उस की जिम्मेदारी दूसरों पर डाल दी जाती है. कभी नगर निगम तो कभी बाहर आकर दिल्ली में बसे लोग और कभी दिल्ली वालों पर.

अखवार में ऐसे विज्ञापन जनता के पैसे का निजी स्वार्थों का दुरूपुओग करके छापे जाते हैं. आज जिस खबर की फोटो मैंने यहाँ छापी है उस के अनुसार लोकायुक्त ने जनता के पैसे का इस तरह दुरूपयोग करने के लिए एक नोटिस जारी किया है. आप को अखवारों में शीला जी के बारे में जो अच्छी खबरे मिलेंगी उन सब में शीला जी की फोटो जरूर होती है, पर इस खबर में शीला जी की फोटो नहीं है. है न मजेदार बात. अगर जनता और नेता के बीच में किसी को चुनना हो तो ज्यादातर अखवार वाले नेता को चुनते हैं. इसे क्या कहेंगे, मजेदार बात या जनता के साथ विश्वासघात?

जनता का पैसा केंद्र सरकार भी खूब उडाती है इस तरह के विज्ञापनों में. खूब जम कर विज्ञापन छपते हैं मंत्रियों और उनकी मालकिन की फोटो के साथ. मेरे विचार में ऐसा ही एक नोटिस प्रधान मंत्री और मंत्रियों को भी भेजा जाना चाहिए.

Wednesday, October 07, 2009

सरकारी हेल्पलाईन - आम आदमी को बेबकूफ बनाने का यंत्र

दिल्ली की मुख्यमंत्री, शीला दीक्षित, ने पिछले तीन चुनाव जीत कर अगर कुछ सीखा है तो वह है आम आदमी को किस तरह बेबकूफ बनाया जाय. सच कहा जाय तो आम आदमी को बबकूफ़ बना कर ही उन्होंने यह चुनाव जीते हैं. भारतीय राजनीति भी अजीब है, इसमें आम आदमी को जो पार्टी सबसे ज्यादा बेबकूफ बना दे वह जीत जाती है. इसमें शीला जी ने जो महारथ हासिल कर ली है वह किसी भी प्रकार से मायावती से कम नहीं है. यह दोनों महिलायें महान हैं. उत्तर प्रदेश में मायावती जी, और दिल्ली में शीला जी. मायवती जी अपनी मूर्तियाँ बनबाती हैं. शीला जी रोज सरकारी विज्ञापनों में अपनी फोटो छपवाती हैं. दोनों अपने-अपने तरीकों से आम आदमी को खूब बेबकूफ बनाती हैं.

आम आदमी को बेबकूफ बनाने के अपने अभियान में शीला जी ने कल एक और अध्याय जोड़ा जब दिल्ली में एक और हेल्पलाइन शुरू की गई. इस हेल्पलाइन को मुख्य मंत्री के 'कान और आँख' का नाम दिया गया है. यानी कि अब मुख्य मंत्री आम आदमी के कान और आँख से देखेंगी. इस का मतलब यह नहीं है कि मुख्य मंत्री के कान और आँख ठीक से काम नहीं कर रहे. वह ठीक ठाक काम कर रहे हैं, पर सारा समय वह इन्हें अपनी और अपनी पार्टी की स्वार्थसिद्धि के लिए प्रयोग करती हैं. आम आदमी के लिए अब वह आम आदमी के कान और आँख प्रयोग करेंगी. 'अपने हाथ मुझे दे दे ठाकुर' गब्बर ने कहा था. 'अपने कान और आँख मुझे दे दे आम आदमी' शीला जी ने कहा.

सब कुछ समझते हुए मैं भी बेबकूफ बन गया. कल मैंने काफी समय नष्ट किया मुख्य मंत्री के कान और आँख बनने के लिए पर जब भी फोन मिलाया यही आवाज आई - लाइन व्यस्त है, कुछ देर बाद फोन करें. हार कर सो गया. आज सुबह अखवार में पढ़ा कि ७० आम आदमी बेबकूफ बनने में कामयाब हो गए. ज्यादा आम आदमियों को जो बेबकूफी की वह नगर निगम द्बारा बेबकूफ बनाने से सम्बंधित थीं. अब इसका इस्तेमाल करेंगी शीला जी, नगर निगम पर अपना अधिकार हासिल करने के लिए. आम आदमी तो परेशान है और परेशान रहेगा. देखा फिर बना दिया न शीला जी ने आम आदमी को बेबकूफ. हो सकता है कामनवेल्थ खेलों के बाद सोनिया जी उन्हें भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित भी कर दें. आखिरकार शीला जी उनके लिए भी तो आम आदमी को बेबकूफ बनाने का काम कर रही हैं.

आप धन्य हैं शीला जी. मुझे भी बेबकूफ बना दिया. सब को समझाता हूँ पर खुद बेबकूफ बन गया. लगा रहा घंटों फोन पर. यही तो महानता है शीला जी आपकी. फिल्म निकाह में एक गाना था - शायद उनका आखिरी हो यह सितम (बेबकूफ बन्नाना), हर सितम यह सोच कर हम सह गए (बेबकूफ बन गए).

Saturday, September 26, 2009

Delh citizens are meant to be harassed.


Government, product and service providers in India have invented many ways to harass Indian citizens.

Electronic energy meters are under mandatory certification under Bureau of Indian Standards Act. All energy meters have to be marked with ISI mark under BIS Product Certification Scheme. Under this scheme, meters are regularly drawn from factories and market and tested by BIS in independent laboratories. I do not understand how faulty meters are purchased by discoms.

As far as walking on Delhi roads is concerned, you are lucky if you are back home in one peace. Shiela Dikshit calls it a world class city, Chidambaram calls it a big and good international city and advises Delhi citizens to behave.

Monday, February 09, 2009

आईसीआईसीआई - मैं ख़ुद को देखता हूँ सिर्फ़ ख़ुद को

यह आईसीआईसीआई बेंक की हकीकत है. यह बेंक और इसके कर्मचारी सिर्फ़ ख़ुद को देखते हैं. ग्राहकों से उन्हें सिर्फ़ इतना लेना देना है कि बेंक को फायदा होता रहे और कर्मचारिओं की तनख्वाह निकलती रहे. बाकी ग्राहक भाड़ में जाएँ. 

हमने अपनी कंसल्टेंसी फर्म के लिए इस बेंक में करेंट खाता खुलवाया. बेंक का एक एक्जीक्यूटिव आया और खाता खुल गया. हम बड़े प्रभावित हुए. खाता चलता रहा. बस जब किसी को पैसा निकलवाने भेजते थे तो कर्मचारी बहुत परेशान करते थे. उनके व्यवहार से लगता था कि वह नहीं चाहते कि हम अपने खाते से पैसा निकलवाएँ. इसलिए हम ज्यादातर लेन देन चेक से करते थे. 

कुछ समय बाद, कुछ कारणों से, फर्म बंद हो गई. बेंक में खाता रखना पड़ा ताकि कभी कोई चेक इत्यादि आ जाए तो उसे कैश करवा सकें. जब ऐसी कोई सम्भावना नहीं रही तो खाता बंद करने का निर्णय किया. अब हुई शुरू असली परेशानी. खाता खोलने के लिए हम एक बार भी बेंक नहीं गए पर उसे बंद करवाने के लिए बड़े चक्कर लगाने पड़े. आखिरकार खाता बंद हो गया. बेंक ने ६१.८९ रुपए की बकाया राशि का एक बेन्कर्स चेक इशु किया. 

बेंक की महानता का यह अन्तिम परिचय है. चेक पर किसी के हस्ताक्षर नहीं हैं. चेक उसी कम्पनी के नाम से बना है जिस का खाता बंद हुआ है. अब इस चेक को कैश करवाने के लिए हमें फ़िर खाता खोलना पड़ेगा. क्योकि चेक पर हस्ताक्षर नहीं हैं इसलिए चेक वापस हो जायेगा. खाता कम से कम २५००० से खुलेगा. यह है आपका आईसीआईसीआई बेंक.

हमारा एक सुझाव है - क्या बेंक का प्रबन्ध बेंक का नाम बदल कर आईसीयूसीयू बेंक रखना चाहेगा? 

Thursday, January 29, 2009

२५ देकर ५०० रुपए की जेब काट ली

सरकार ने कुकिंग गेस के सिलिंडर की कीमत में २५ रुपए की कमी कर दी. मीडिया वाले पगला गए, चिल्लाने लगे, आने वाले चुनाव से पहले तोहफा. जब सरकार कीमत बढाती है तब कोई नहीं कहता कि जेब काट ली. पर जब कीमत कम होती है तो उसे तोहफा कहा जाता है. जब अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतें बढीं तो सरकार ने यहाँ कीमतें बढ़ा दीं. किसी ने कुछ नहीं कहा. पर जब अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतें कम हुईं तो सरकार महीनों तक केवल घोषणाएं करती रही, और जब बाकई में कीमतें कम हुईं तो उसे तोहफे का नाम दे दिया. हकीकत यह है की जितनी कीमतें अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कम हुई हैं उसके अनुपात से यहाँ कीमतें कम नहीं की गई हैं.

किसी भी प्रजातांत्रिक सरकार के लिए यह शर्म की बात है. पर इस सरकार के लिए नहीं, क्योंकि यह सरकार प्रजातांत्रिक सरकार है ही नहीं. इसे राजतंत्र, नेतातंत्र, परिवारतंत्र, या फ़िर गुंडातंत्र की सरकार तो कहा जा सकता है, पर प्रजातांत्रिक सरकार कहना सत्य को झुटलाना होगा. एक नेता बाहर निकलता है तो इतना तेल फूंक देता है जो एक आम नागरिक पूरे साल में नहीं फूंकता होगा. और इस सारे तेल की कीमत जनता को चुकानी पड़ती है. जनता के पैसे से ऐयाशी करने वाले यह नेता, 'तेल कम्पनियों को घाटा हो रहा है' की दुहाई देते हैं. २५ रुपए कम करके कहते हैं जनता को तोहफा दिया है, जैसे यह पैसा इनका है, और यह चाहते हैं कि इस तोहफे के बदले में इन्हें फ़िर वोट दिया जाय.

२५ रुपए तो तब बचेंगे जब अगली बार सिलिंडर लेंगे, पर ५०० रुपए महीने की जेब तो कट गई पिछले सितम्बर से. स्कूलों की फीस बढ़ा दी. क्या पढाते हैं यह स्कूलों में? नीति, शिष्टाचार, नैतिकता या सिर्फ़ ज्ञान-वर्धन जो मात्र पैसा कमाने के लिए है. स्कूल जब ख़ुद पैसा कमाने की दुकाने बन गए हैं तो बच्चों को क्या सिखायेंगे? पैसा,पैसा और ज्यादा पैसा. ग़लत या सही किसी तरीके से भी. लोग स्कूलों को अपनी दूसरी जरूरतें काट कर फीस देते हैं और उनका बच्चा 'ज्यादा ग़लत' और 'कम सही' सीख कर आता है स्कूल से. मास्टर ज्यादा तनख्वाह मांगते हैं और बच्चों की पिटाई करते हैं. कुछ मास्टर तो अमानवीय कृत्य तक कर डालते हैं बच्चों के साथ.

क्या करे बेचारा आम आदमी?

Sunday, January 04, 2009

यह पैदल चलने वाले बेबकूफ

कल अखबार में पढ़ा कि सड़क पर हुए हादसों में होने वाली मौतों का अधिक प्रतिशत सड़क पर पैदल चलने वालों का होता है. पैदल चलते-चलते अचानक ही यह लोग कार (एम्बुलेंस) में बिठा दिए जाते हैं और जहाँ उन्हें जाना था, वहां न ले जा कार उन्हें अस्पताल ले जाती है. अस्पताल में, 'मृत आए' की पर्ची लगा दी जाती है, या कुछ दिन बाद यह लोग 'मृत पर्ची' के अधिकारी हो जाते हैं. 

बैसे अगर आप सरकार से पूँछें तो जवाब मिलेगा कि यह लोग सड़क पर क्यों चलते हैं? हमने पैदल चलने वालों के लिए फूटपाथ बनाए हैं, यह लोग फूटपाथ पर क्यों नहीं चलते. अब सरकार को यह कौन समझाए कि उस के बनाये फुटपाथ तो चोरी हो गए. लोगों ने फुटपाथ पर दुकाने सजा ली हैं. सरकारी बाबू, नगर निगम और पुलिस ने फुटपाथ दुकानदारों को बेच दिए हैं. साथ ही फुटपाथ से लगा सड़क का कुछ हिस्सा उन्हें बोनस में दे दिया है. पैदल चलने वाले को सड़क के बीच में चलना पड़ता है, और किसी समय भी बेचारा वर्तमान से भूतकाल हो जाता है. 

मेरे एक मित्र ने कहा कि सरकार को क्या समझाओगे? सरकार जहाँ रहती है वहां के फुटपाथ थोड़े ही चोरी हुए हैं. वहां के फूटपाथ तो यहाँ की सड़क से बहुत अच्छे हैं. भूल गए जब प्रधानमन्त्री ने मुख्यमंत्री की पीठ थपथपाई थी और कहा था कि दिल्ली भारत का सबसे सुंदर शहर है. पुलिस कमिश्नर के अनुसार दिल्ली बहुत सुरक्षित है.  सरकार जिन लोगों के लिए है, वह सुंदर दिल्ली में रहते हैं और सुरक्षित हैं. दूसरे लोग तो साले बेबकूफ हैं कि रोज मरते हैं, पर सुबह उठ कर वोट इसी सरकार को दे आते हैं. इतनी सी बात इन बेबकूफों की समझ में नहीं आती कि सरकार उनकी नहीं होती जिनके वोटों से बनती है.