यह आईसीआईसीआई बेंक की हकीकत है. यह बेंक और इसके कर्मचारी सिर्फ़ ख़ुद को देखते हैं. ग्राहकों से उन्हें सिर्फ़ इतना लेना देना है कि बेंक को फायदा होता रहे और कर्मचारिओं की तनख्वाह निकलती रहे. बाकी ग्राहक भाड़ में जाएँ.
हमने अपनी कंसल्टेंसी फर्म के लिए इस बेंक में करेंट खाता खुलवाया. बेंक का एक एक्जीक्यूटिव आया और खाता खुल गया. हम बड़े प्रभावित हुए. खाता चलता रहा. बस जब किसी को पैसा निकलवाने भेजते थे तो कर्मचारी बहुत परेशान करते थे. उनके व्यवहार से लगता था कि वह नहीं चाहते कि हम अपने खाते से पैसा निकलवाएँ. इसलिए हम ज्यादातर लेन देन चेक से करते थे.
कुछ समय बाद, कुछ कारणों से, फर्म बंद हो गई. बेंक में खाता रखना पड़ा ताकि कभी कोई चेक इत्यादि आ जाए तो उसे कैश करवा सकें. जब ऐसी कोई सम्भावना नहीं रही तो खाता बंद करने का निर्णय किया. अब हुई शुरू असली परेशानी. खाता खोलने के लिए हम एक बार भी बेंक नहीं गए पर उसे बंद करवाने के लिए बड़े चक्कर लगाने पड़े. आखिरकार खाता बंद हो गया. बेंक ने ६१.८९ रुपए की बकाया राशि का एक बेन्कर्स चेक इशु किया.
बेंक की महानता का यह अन्तिम परिचय है. चेक पर किसी के हस्ताक्षर नहीं हैं. चेक उसी कम्पनी के नाम से बना है जिस का खाता बंद हुआ है. अब इस चेक को कैश करवाने के लिए हमें फ़िर खाता खोलना पड़ेगा. क्योकि चेक पर हस्ताक्षर नहीं हैं इसलिए चेक वापस हो जायेगा. खाता कम से कम २५००० से खुलेगा. यह है आपका आईसीआईसीआई बेंक.
हमारा एक सुझाव है - क्या बेंक का प्रबन्ध बेंक का नाम बदल कर आईसीयूसीयू बेंक रखना चाहेगा?