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Thursday, December 18, 2008
परदे के पीछे रेल बजट
Saturday, August 30, 2008
लालू की रेल, हो गई फेल
कुछ देर बाद, उनकी बेटी के दोनों बच्चे उनके पास आए और बोले, 'नाना हम आपसे नाराज हैं। इतनी गन्दी ट्रेन है यह, और आप इस की तारीफ़ कर रहे थे। क्या ताज महल भी ऐसा ही होगा?' वह बेचारे चुप रहे। मैंने कहा, 'नहीं बच्चों ताज महल तो बहुत खूबसूरत है, तुम लोग देखोगे तो बहुत खुश हो जाओगे'। उन्होंने मेरी तरफ़ अविश्वास से देखा और अपनी सीट पर चले गए। मैंने मन में सोचा, ताजमहल तो बाकई बहुत सुंदर है और शायद इसलिए कि लालू ताजमहल को गन्दा नहीं कर पाये हैं।
जिन लालू की हर तरफ़ तारीफ़ होती है उन लालू की रेल को दो बच्चों ने कर दिया फेल।
Sunday, August 24, 2008
दिल्ली के नागरिक आख़िर करें क्या?
इस बार बात कुछ इतनी ज्यादा बिगड़ गई कि अखबार वालों को दिल्ली की सड़कों के ख़िलाफ़ मुहिम चलाना पड़ा। दिल्ली की सड़कों से ज्यादा ख़राब सड़कें शायद भारत में कहीं और नहीं होंगी। अगर यकीन न हो तो यह तस्वीर देखिये जो कुछ दिन पहले अखबार में छपी थी.
Thursday, August 07, 2008
रेल में मौत के लिए कौन जिम्मेदार?
यह रेल दुर्घटना दोनों टाली जा सकती थी. यात्रियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कंपनियां आज कल अन्तर-राष्ट्रिय मानकों के अनुसार मेनेजमेंट सिस्टम्स लगाती हैं. रेल मंत्रालय को यह सिस्टम्स अपने यहाँ लगाने आवश्यक थे,पर उन्होंने नहीं लगाए. इन सिस्टम्स को लगाने का निर्णय कंपनी के प्रमुख द्बारा लिया जाता है. रेल कम्पनी के प्रमुख लालू प्रसाद हैं. इस सिस्टम में, रेल यात्रा के दौरान जितनी भी संभावित रिस्क हो सकती हैं उनका आंकलन किया जाता है और फ़िर उन्हें दूर करने के उपाय किए जाते हैं. इस मानक का नंबर है OHSAS 18001.
लालू प्रसाद ने अगर अपनी रेल में यदि यह सिस्टम लगाया गया होता तो रेल स्टाफ और यात्रियों को इस की पूरी जानकारी दी गई होती और उन्हें किसी भी इमरजेंसी में कैसे और क्या करना है इस के लिए भी ट्रेनिंग दी गई होती. पूरी सम्भावना थी कि इस के कारण यह दुर्घटना होने से बच जाती, और बच जाती नागरिकों की जान और राष्ट्र की संपत्ति.
रेल मंत्रालय / रेल मंत्री ने अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं की और इतने निर्दोष यात्रिओं की जान गई. अब इन्हें कोई सजा दे पायेगा इस में तो पूरा संदेह है. सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि सरकार और बाबुओं को तो अब भगवान् भी ठीक नहीं कर सकते.
Monday, August 04, 2008
गैस सिलिंडर छीनने की धमकी
जब हमारे अपार्टमेंट्स में पाइप से गैस मिलने की बात हुई तो हमने तुंरत रजिस्टर करा लिया. सोचा चलो यह परेशानी अब ख़त्म हो जायेगी. पर अभी गैस मिलनी शुरू नहीं हुई कि यह धमकी दे डाली सरकार ने. लगता है यह सरकार ईमानदार नागरिकों को चैन से न रहने देने की कसम उठा चुकी है. हम सोच रहे थे कि जब कभी पाइप की गैस में कोई दिक्कत होगी तो एक रिजर्व में रखा सिलिंडर काम आएगा. पर अगर दोनों सिलिंडर वापिस करने पड़े तो परेशानी फ़िर बैसी की बैसी रही.
जो लोग गैस ब्लेक में ले लेते हैं, जिन्होनें झूट बोल कर एक से ज्यादा कनेक्शन ले रखे हैं, उन्हें न पहले कोई परेशानी थी और न अब होगी. परेशान होंगे तो केवल हम जैसे ईमानदार शहरी. सरकार भी उन्हीं के साथ है. बेईमान-बेईमान भाई-भाई. जो सरकार ख़ुद ही बेईमानी से विश्वासमत जीतती है उस से क्या उम्मीद की जा सकती है कि वह ईमानदार नागरिकों की चिंता करेगी?
Monday, July 14, 2008
शताब्दी ट्रेन में खाने में क्राक्रोच
लालू जी की रेल का ट्रेड मार्क अब बदलना चाहिए - "ठंडा वेस्वाद कीड़े वाला खाना".
मजा यह रहा की केटरर की वकालत की गई. यह कहा गया कि केटरर द्बारा सप्लाई किए गए खाने में कीड़े नहीं थे. कीड़े ट्रे में थे. यात्री यह नहीं समझ पा रहे थे और सोच रहे थे कि ट्रे क्या वह अपने साथ लाये थे? अरे भाई ट्रे भी तो केटरर की ही थी. लेकिन बात सोचने की यह है कि रेल वाले केटरर की वकालत क्यों कर रहे थे? एक यात्री के अनुसार एक शताब्दी ट्रेन में केटरिंग का कांट्रेक्ट लेने के लिए एक करोड़ रिश्वत देनी पड़ती है. अब एक करोड़ खा कर रेल वालों को केटरर की वकालत तो करनी ही पड़ेगी.
लालू जी की रेल में यात्रा करने वालों से निवेदन है की वह सफर के दौरान खाने के लिए घर से खाना लायें. शताब्दी और राजधानी ट्रेन्स में यात्रियों से पूछा जाए ओर उन्हीं यात्रियों से खाने का पैसा लिया जाए जो लालू जी द्बारा सप्लाई किया खाना खाना चाहते हैं. जो यात्री अपना खाना घर से लायेंगे उनसे खाने का पैसा न लिया जाए.
Tuesday, July 08, 2008
मजबूरी का नाम है लालू
"ठंडा वेस्वाद खाना" लालू जी की रेल का ट्रेड मार्क है. यह खाना न देखने में अच्छा है और न खाने में. इसकी पेकिंग भी बहुत घटिया होती है. जिस तरह से यह आपको सर्व किया जाता है वह भी बहुत ही घटिया है. रेल के वेटर इस तरह सर्व करते हैं जैसे सोच रहे हों कि कहाँ फंस गए और किसी तरह यह काम ख़तम हो तो जान छूटे. मैंने बहुत से सहयात्रियों से इस बारे में बात की है. लगभग सभी का यह कहना है कि भूख लगी होती है और कुछ दूसरी चीज खाने को होती नहीं, इस लिए इस ठंडे वेस्वाद खाने को गले से उतार कर पेट भरते हैं. क्या करें मजबूरी है, और मजबूरी का नाम है, लालू.
बहुत से यात्री लालू जी का खाना नहीं खाते. बस आइसक्रीम से काम चलाते हैं. उन का कहना है, भले ही देर से खाएं घर का खाना ही खाएँगे. एक बार मैंने अपने सहयात्री से पूछा कि आप ने खाने को मना क्यों कर दिया, उन्होंने मुझे घूर कर देखा, फ़िर मेरी खाने की ट्रे को देखा, फ़िर मेरे ऊपर एक दया भरी द्रष्टि डालते हुए कहा, "बीमार पड़ना है क्या?". मैं बीमार तो नहीं पड़ा पर लालू जी का खाना खाने के बाद मन काफ़ी देर तक अजीब सा रहता है. एक बार ऐसा हुआ कि एक बच्चे को उलटी हो गई थी. उसने अपने पापा के बहुत मना करने पर भी लालू जी का दही खा लिया था.
कल ही मैंने यह ठंडा वेस्वाद खाना खाया था. मन अजीब सा हो गया था. घर पहुँचा तो पत्नी ने कहा घर से कुछ ले जाया करो, क्यों बीमार पड़ने पर तुले हुए हो? सोचता हूँ पत्नी की बात मान लूँ. इस ब्लाग के माध्यम से लालू जी से छमा चाहूँगा. लालू जी अब और आपका खाना नहीं खा पाऊँगा, भले ही आप उसके पैसे मेरी जेब से निकालते रहें.
Sunday, July 06, 2008
लालू जी की रेल - अघोषित घोषणाऐं
"अगर आप किसी जरूरी काम से यात्रा कर रहे है और समय की भी पाबंदी है तब हमारी रेल से यात्रा न करें. अगर कोई रेल समय से पहुँच जाती है तब यह ईश्वर की इच्छा है. समय का हमारी रेल में कोई महत्त्व नहीं है. हम देरी के लिए खेद प्रकट करने के अलावा कुछ नहीं कर सकते."
"अगर आपको सादा, स्वच्छ, स्वादिष्ट और पौष्टिक खाना खाने की आदत है तब अपना खाना ख़ुद लायें. यात्रा के दौरान अगर आपने स्टशन या रेल में आईआरसीटीसी द्बारा सप्लाई किया गया खाना खाया और बीमार हो गए तो इसके लिए आप ख़ुद जिम्मेदार होंगे."
"अगर आपको सुबह घूमने की आदत है और स्वच्छ हवा अपने फेफड़ों में भरने का नशा है तब स्टेशन पर बने प्रतीक्षालयों में न जाएँ. बहाँ के अशुद्ध वातावरण में अगर आप बीमार हो गए तो इसके लिए आप ख़ुद जिम्मेदार होंगे."
"अगर आपकी रेल किसी स्टशन पर रुकी है तब खिड़की से बाहर न झांकें. साथ की पटरियों पर गन्दगी और कूड़ा-करकट देख कर अगर आपकी तबियत ख़राब हो गई तब इसके लिए आप ख़ुद जिम्मेदार होंगे."
"रेल का बहुत सा पैसा जुर्माने से बसूल होता है. इसलिए बिना टिकट या ग़लत टिकट के साथ यात्रा करें और जुर्माना भरें. ऐसा करके आप अपना राष्ट्रीय कर्तव्य पूरा करेंगे रेल को फायदा होगा और हमारे मंत्री जी की तारीफ़ होगी और उन्हें हार पहनने को मिलेंगे."
"समय से टिकट खरीदना कोई अच्छी आदत नहीं है. तत्काल सेवा का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें. इस से आपकी जेब हलकी होगी, रेल की जेब भरेगी, मंत्री जी की तारीफ़ होगी और उन्हें हार पहनने को मिलेंगे."
"अगर आपको दिल्ली से आगरा जाना है और वापस आना है तब वापसी का टिकट दिल्ली में खरीदें. जाने का टिकट आगरा के किसी ट्रेवल एजेंट द्बारा खरीदें. इससे हर टिकट पर हमारी रेल को १५ रुपए ज्यादा मिलेंगे. रेल फायदे में जायेगी. मंत्री जी की तारीफ़ होगी और उन्हें हार पहनने को मिलेंगे. ऐसा सब यात्राओं में करके अपनी राष्ट्रभक्ति का सबूत दें."
"रेल सेवाओं में कमी और गड़बड़ की शिकायत करना अच्छी आदत नहीं है. यह बिना मतलब की शिकायतें करके आप मंत्री जी और उनके सहयोगिओं को परेशान करते हैं. हमारी रेल में शिकायत सुनने और उस पर कार्यवाही करने का कोई प्रावधान नहीं है. शिकायत करके अपना और हमारा समय नष्ट न करें."
"रेल सुरक्षा बल आपकी सुरक्षा के लिए नहीं है. यह आपसे रेल को कोई नुक्सान न पहुंचे यह देखने के लिए है. अगर कोई सुरक्षा कर्मचारी आपकी वजह से परेशान हुआ तो आपके ख़िलाफ़ कार्यवाही की जायेगी."
"हमारी रेल में आप अपनी जिम्मेदारी पर सफर करते हैं. समान की चोरी, आपकी अपनी टूट-फूट और किसी भी नुकसान के लिए आप ख़ुद जिम्मेदार हैं. आप अपनी मर्जी से रेल में यात्रा करते. हम आपको यात्रा करने के लिए बुलाने नहीं जाते."
"हम अक्सर ऐसा कहते हैं - 'रेल आपकी संपत्ति है'. इसे सच न मान लें. रेल हमारे मंत्री जी और उनके परिवार, सम्बन्धियों, मित्रों और अन्य राजनेताओं की व्यक्तिगत संपत्ति है. आप उस में इस लिए सफर करते हैं कि रेल को फायदा हो. आपकी सुविधा के लिए हम रेल नहीं चलाते."
Saturday, June 21, 2008
मनमोहन जी द्बारा मुद्रास्फीति का नया रिकार्ड
पिछली बार यह कारनामा कांग्रेस सरकार के आखिरी साल में हुआ था, और चुनाव में सरकार हार गई थी। इस बार भी यह कारनामा सरकार के आखिरी साल में हुआ है। क्या इस बार भी कांग्रेस चुनाव हारेगी? मेरे विचार में हारना चाहिए। आग लगा दी है इस मंहगाई ने। मेरे जैसे पेंशन याफ्ता लोग क्या करें? कल जो सब्जी १६ रूपया किलो थी आज वह २० रुपया किलो है। एक न टूटने वाला चक्कर बन गया है। पहले बाज़ार में कीमतें बढ़ती हें। फ़िर उस से मंहगाई बढ़ती है। अखबार में बढ़ती मंहगाई की ख़बर से दुकानदार कीमतें और बढ़ा देते हें। कोंई कंट्रोल नहीं है इस सरकार का मंहगाई पर। सिवाय प्रदेश सरकारों को दोष देने के यह सरकार कुछ नहीं कर सकती। आम आदमी की सरकार आम आदमियों को निगल रही है।
एक भी तो कायदे का काम नहीं कर पाई यह सरकार। सारा समय मनमोहन जी अल्पसंख्यकवाद का राग अलापते रहे। इस सरकार के सारे फैसलों ने मंहगाई को ही बढ़ाया। वोट के चक्कर में जनता का पैसा इधर-उधर की तुष्टिकरण की योजनाओं में बरबाद करती रही यह सरकार। और तकलीफ की बात यह है की जिनके लिए यह किया गया उन्हें कोंई फायदा नहीं पहुँचा।
एक वरिष्ट नागरिक के दिल के दर्द है यह।
Thursday, June 19, 2008
अरे भाई इन्हें सजा क्यों नहीं देते?
जो हुआ उस में कोई आश्चर्य की बात नहीं हैं. दिल्ली की सिविक एजेंसीज इस सब के लिए हमेशा से मशहूर हैं. सच पूछिए तो पूरी दिल्ली सरकार ही गड्ढे खोद रही है और खुदवा रही है. दिल्ली में कहीं भी चले जाइए आपको गड्ढे ही गड्ढे नजर आयेंगे (मनमोहन जी की हरी-भरी, साफ़-सुथरी और अति सुंदर दिल्ली को छोड़कर).
चितरंजन पार्क के निवासी हर समय खतरे में हैं. किसी भी समय कोई भी गड्ढे में गिर सकता है. गड्ढे के चारों तरफ़ कोई बाढ़ नहीं हैं, न कोई खतरे से आगाह करने का कोई बोर्ड है. खुले पानी के पाइप्स, विजली और फोन के तार, कोई भी कभी भी उलझ कर गिर सकता है. पर किसे चिंता है? मनमोहन, शीला और जल बोर्ड के चीफ और अधिकारिओं के घर के आस पास गड्ढे नहीं खोदे जाते. अगर कोई गिरेगा तो कोई आम आदमी गिरेगा और आम आदमी की चिंता किसे है?
क्या यह संब अपराध नहीं है? इन लोगों को सजा क्यों नहीं दी जाती? क्या कानून सरकार और सरकारी बाबुओं के लिए नहीं है? दिल्ली जलबोर्ड वालों, डूब मरो शर्म से इस गड्ढे में.
Saturday, June 14, 2008
महंगाई का कोल्हू
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"जनता को सताने में बहुत मजा (sadistic pleasure) आता है डीडीऐ को", दिल्ली हाई कोर्ट.
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उनका चेक बाउंस हो गया, उन पर मुकदमा चला, वह अदालत में हाजिर नहीं हुए, अदालत ने कई सम्मन भेजे. पर वह फ़िर भी हाजिर नहीं हुए. अदालत ने दिल्ली पुलिस को खूब फटकारा और गैर-जमानती वारंट इशू कर दिया. पुलिस उनके घर आई उन्हें गिरफ्तार करने. अब उनका शव मुर्दाघर में है.
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"मेरे घर वाली गली में एक महीने से झाड़ू नहीं लगी",
"पिछले महीने हमारी नाली साफ हुई थी पर कीचड़ अभी भी हमारे दरवाजे पर पड़ी है:,
ऐसी सैकड़ों शिकायतें दिल्ली नगर निगम के पार्षद के पास आती हैं.
पार्षद जी ने बताया कि कोई सफाई कर्मचारी काम नहीं करता. उनके पीछे पड़ कर एक-एक शिकायत दूर करानी पड़ती है. सारा समय इसी में निकल जाता है.
हमने कहा, कहा, "फ़िर विकास का काम कब होगा?".
उन्होंने कहा, "अरे झाड़ू मारिये विकास को. अगर मैंने यह झाड़ू नहीं लगवाई तो अगले चुनाव में मेरे को झाड़ू लगा देंगे यह लोग".
हम पहुंचे सफाई कर्मचारियों के पास. उन्होंने कहा, "साहब, अगर सारा काम अपने आप हो जाए तो कोई तारीफ़ नहीं करता. अब शिकायत करेंगे तो देर सबेर काम हो ही जायेगा. जमता खुश होगी कि उसकी शिकायत पर कार्यवाही हुई. हमें भी कुछ चाय पानी का पैसा मिलेगा. पार्षद जी भी खुश होंगे और जनता से कह सकेंगे कि देखिये हम ने आप की शिकायतों पर कार्यवाही करवाई. उन्हें भी तो चुनाव जीतना है अगली बार".
हमने पूछा, "बाकी समय क्या करते हैं आप?".
उन्होंने कहा, "ताश खेलते हैं और गुर्जर आन्दोलन पर बहस करते हैं".
हम चुप रहे.
वह मुस्कुराए, "अरे जाने दीजिये न, सब खुश हैं. आप क्यों परेशान होते हैं? आप अपने घर का नंबर बताइये, वहाँ सफाई ठीक से करवा देंगे. आपको पार्षद जी को शिकायत करने की जरूरत नहीं पड़ेगी".
हम वापस आने के लिए मुड़े.
तभी उन्होंने कहा. "साहब आप तो पढ़े-लिखे हैं. यह वसुंधरा सरकार आने वाले चुनाव में जीत पायेगी क्या? या गुर्जर इस सरकार को खा जायेंगे?".
हम मुस्कुरा दिए. एक खुशी भी हुई मन में. देखो हमारे सफाई कर्मचारी भी कितने सजग हैं प्रजातंत्र के लिए!
Friday, May 30, 2008
दोपहर में सड़कों की विजली आन
जो सरकार और विजली कम्पनियाँ जनता को विजली बचाने के उपदेश देती रहती हैं, ख़ुद इस प्रकार विजली नष्ट कर रही हैं. यह लोग विजली की चोरी रोकने में नाकामयाब हैं और ख़ुद भी इस तरह विजली व्यर्थ खर्च करते हैं. इस का खामियाजा बेचारी ईमानदारी से बिल भरने वाले उपभोक्ताओं को उठाना पड़ता है.
आज कल विजली कंपनियां फ़िर से विजली की कीमत बढ़ाने का अभियान छेड़े हुए हैं. कितनी शर्म की बात हे कि इन कम्पनिओं की नालायकी की कीमत जनता को चुकानी पड़ती है. अफ़सोस यह है कि जनता के प्रतिनिधि इस मामले में कुछ नहीं करते. सरकार तो इन कम्पनियों के साथ है ही. जनता बेचारी क्या करे.
जनताकरण या निजीकरण
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Wednesday, May 28, 2008
मैंने लालू जी को पत्र लिखा
केन्द्रीय रेल मंत्री, भारत सरकार
रेल भवन, नई दिल्ली
मंत्री महोदय,
भारत के एक वरिष्ठ नागरिक का आप को नमस्कार. कुछ दिनों पहले मुझे आपकी रेल में सफर करने का मौका मिला. मैं दिल्ली में रहता हूँ और मुझे उड़ीसा में झरसुगुडा जाना था. शाम को वायुयान से दिल्ली से कोलकाता पहुँचा. हावड़ा से मुझे हावड़ा - अहमदाबाद एक्सप्रेस (२८३४) से झरसुगुडा जाना था. एअरपोर्ट से मैं हावड़ा स्टेशन पहुँच गया. मुझे लगभग तीन घंटे स्टेशन पर बिताने थे क्योंकि यह ट्रेन रात ११५५ पर हावड़ा से छूटती है.
प्लेटफार्म पर बहुत भीड़ थी और बैठने का कोई इंतजाम नहीं था. मैं ऊपर प्रतीक्षालय में पहुँचा,पर वहाँ की स्थिति तो प्लेटफार्म से भी ख़राब थी. गरमी बहुत थी. कुर्सियों की संख्या यात्रियों की संख्या से बहुत कम थी. पंखों की संख्या भी कम थी और जिस तरह उन्हें लगाया गया था उनसे हवा नहीं मिल पा रही थी. शौचालय गंदे और बदबू से भरे हुए थे. फर्श पर पानी भरा हुआ था. मैंने जब एक सहयात्री से इस बारे में बात की तो उसने कहा, 'यह भारतीय रेल में सफर करने की सजा है'. यकीन कीजिये मंत्री जी, अगर किसी सजायाफ्ता मुजरिम को इस प्रतीक्षालय में बंद कर दिया जाय तो वह अपराध करना छोड़ देगा.
जब मुझसे गरमी और बदबू बर्दाश्त नहीं हुई तो मैं नीचे प्लेटफार्म पर आ गया. वहाँ भी बहुत गरमी थी. बैठने के लिए सीट नहीं थीं. यात्री जमीन पर बैठे हुए थे. यह प्लेटफार्म अभी नया बनाया गया है, पर न जाने क्यों बैठने की उचित व्यवस्था नहीं की गई है. ट्रेन के जाने का समय हो गया पर ट्रेन प्लेटफार्म पर नहीं लगाई गई. लगभग ४० मिनट बाद ट्रेन प्लेटफार्म पर आई. चलते चलते काफ़ी लेट हो गई ट्रेन. झरसुगुडा यह ट्रेन लगभग तीन घंटे लेट पहुँची. जिस मीटिंग के लिए मैं झरसुगुडा गया था वह दो घंटे देर से शुरू हो पाई. मंत्री जी हावड़ा स्टेशन पर जो तकलीफ हुई वह तो मैंने बर्दाश्त की, पर मेरी वजह से कार्यक्रम देर से शुरू हो पाया इस के लिए मुझे ३० व्यक्तियों के सामने शर्मिंदा होना पड़ा.
अब वापसी की बात करें. झरसुगुडा से हावड़ा मुझे आज़ाद हिंद एक्सप्रेस (२१२९) से आना था. यह ट्रेन लगभग दो घंटे देर से आई. रास्ते में और ढाई घंटा लेट हुई. हावड़ा इस ट्रेन ने ०३५५ पर पहुँचना था, पर ०८३० पर पहुँची. कोलकाता से मेरी टिकट ०८२० की फ्लाईट में थी. फ्लाईट मिस हो गई. ११३५ की फ्लाईट से नया टिकट खरीदना पड़ा. दिल्ली में अपने घर चार घंटे लेट पहुँचा.
यह बहुत ही निराशाजनक है कि आपकी रेलों में समय की पाबन्दी पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता. आपने जितने रेल बजट पेश किए हैं उन में कभी समय की पाबंदी की बात नहीं की गई. जब मंत्री जी ही को समय की पाबन्दी की कोई चिंता नहीं है तो रेल अधिकारी इस बारे में क्यों चिंतित होंगे? यह भारतीय रेल के लिए शर्म की बात है.
अब बात करें पैसे की जो मुझे खरचना पड़ा. मुझे हावड़ा से झरसुगुडा जाना था पर तत्काल सेवा में मुझे टिकट अहमदाबाद तक खरीदना पड़ा. झरसुगुडा तक ८७६ रुपए लगते हैं पर मुझे अहमदाबाद तक के टिकट पर २२८० रुपए खर्च करने पड़े. वापसी में यही हुआ. झरसुगुडा की जगह मुझे अहमदाबाद से टिकट खरीदना पड़ा. कार्यकर्म चूँकि लेट शुरू हुआ था इसलिए समाप्त होने में देर हुई और यह टिकट बेकार गया. चूँकि यह टिकट अहमदाबाद से था इस लिए झरसुगुडा में केंसिल नहीं हो पाया. एक नया टिकट खरीदना पड़ा. पर इस बार टिकट झरसुगुडा की जगह राजनांद गाँव से दिया गया. यह टिकट १२२८ रुपए में आया. कुल मिला कर मुझे १७५२ रुपए की जगह ५७८८ रुपए खर्च करने पड़े.
ट्रेन के हावड़ा लेट पहुँचने से मुझे और ज्यादा नुकसान हुआ. जो रिजर्व टिकट था उस का तो पैसा गया ही, नए टिकट पर ४४२४ रुपए और खर्च करने पड़े. इस प्रकार आपकी रेल में सफर करने से मुझे शारीरिक और मानसिक परेशानी तो हुई ही, उस साथ आर्थिक नुकसान भी हुआ ८६४० रुपए का. काफ़ी मंहगा बैठा यह भारतीय रेल का सफर.
यह सब क्या है? मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा. एक व्यक्ति के एक सफर में रेल ने ४२१६ रुपए ज्यादा कमाए. लाखों लोग आपकी रेल से सफर करते हैं. कुछ न कुछ हर यात्री से ज्यादा कमाया ही जाता होगा. इसे क्या कहा जाए, ईमानदारी की कमाई या बेईमानी की? आप कहेंगे की यह तो हमारे नियम हैं. यही तो बेईमानी है. भारत मैं आप की ही एक रेल है. वह सरकारी भी है. अब इस का ग़लत फायदा उठाया जाय और जैसे चाहे नियम बना दिया जाएं. यह तो बेईमानी ही कहलायेगी.
मंत्री जी आप को शायद मेरी बात अच्छी न लगे पर यह जो दिखाया जा रहा है कि आपने रेल को नुकसान से फायदे में ला दिया है, इसी तरह के नियम बना कर और यात्रियों से ग़लत पैसे बसूल कर किया जा रहा है. दिखाने को किराए में कुछ कमी कर दी गई है पर हकीकत में इन यात्री विरोधी नियमों से ज्यादा पैसा बसूला जा रहा है.
रेल एक सरकारी महकमा है. उस का मुख्य उद्देश्य यात्रियों को एक सुविधाजनक, समयबद्ध, साफ-सुथरी, सुरक्षित, सस्ती सेवा उपलब्ध कराना होना चाहिए, न कि केवल पैसा कमाना. सरकारी रेल को 'न फायदा, न नुकसान' के सिद्धांत पर चलना चाहिए. फायदा दिखा कर वाह वाही लूटने के लिए इन सभी यात्री सुवुधाओं को दर किनार कर देना बहुत ही बुरी बात है. कृपया इस बात पर गौर कीजिये.
मैं चाहूँगा कि आप इस पत्र को एक शिकायत के रूप में भी लें, और मेरा जो ज्यादा पैसा खर्च हुआ है उसे वापिस करवाने की व्यवस्था करें. टिकट मेरे पास सुरक्षित हैं. आप जब कहेंगे, उन की प्रतिलिपि मैं आप को भिजवा दूँगा.
साभार,
एस. सी. गुप्ता
Tuesday, May 27, 2008
करों का राक्षस फ़िर सर उठा रहा है
मेरा काम कर लगाना है,
क्या सोचा था तुमने, बजट सत्र गया तो मैं भी गया?
मेरे लिए हर दिन बजट का दिन है,
जब चाहूँगा कर लगा दूँगा,
अगर कार चलाओगे तो सड़क पर कर लगा दूँगा,
अगर बैठोगे तो सीट पर कर लगा दूँगा,
अगर ठंड में काँपे तो गर्मी पर कर लगा दूँगा,
अगर पेदल चलोगे तो पैरों पर कर लगा दूँगा,
पानी, विजली पर सेवा कर लगा चुका हूँ,
किसी दिन लगा दूँगा सेवा कर,
हवा, धूप और फूलों की खुशबू पर,
मुझ से डरो, मैं वित्तमंत्री हूँ.
अस्पतालों में डाक्टर नहीं हैं तो क्या हुआ?
स्कूलों में अध्यापक नहीं हैं तो क्या हुआ?
सड़कों में गड्ढे हैं तो क्या हुआ?
आवागमन के साधन बेकार हैं तो क्या हुआ?
सड़कों पर, घरों में अपराधों का राज्य है तो क्या हुआ?
कीमतें आसमान छू रही हैं तो क्या हुआ?
मेरा काम तो कर लगाना है,
जैसा मर्जी कर लगा दूँगा,
खुले आम तुम्हारी जेब काट लूंगा,
आयकर, वेट, एक्साइज, विक्रीकर,
आय कर पर शिक्षा उपकर,
बहुत सारे हथियार हैं मेरे पास,
कहाँ तक बचोगे?
मुझ से डरो, मैं वित्तमंत्री हूँ.
अभी एक ख्याल आया है मन में,
पेट्रोल और डीजल महंगे करने हैं,
न बढ़ा पाया कीमतें तो क्या हुआ?
आयकर पर लगा दूँगा,
पेट्रोल और डीजल उपकर,
करों के वोझ से लाद दूँगा,
न उठा पाओगे सर कभी,
मुझ से डरो, मैं वित्तमंत्री हूँ,
मेरा काम कर लगाना है,
अगर नहीं डरे तो समझ लेना,
'न डरने' पर भी कर लगा दूँगा।
Monday, May 26, 2008
लालू जी और मेरी जेब
पहले में जब भी दिल्ली से आगरा या चंडीगढ़ जाता था, दिल्ली में ही जाने के और वापसी के टिकट खरीदता था. पर जब से लालू जी की मेहरबानी हुई वापसी के टिकट में १५ रुपए ज्यादा लगने लगे. रेंगती रेलों को सुपर फास्ट कह कर यात्रिओं की जेब हल्की करना पता नहीं कौन से मेनेजमेंट का मन्त्र है? तत्काल के नाम पर यात्रिओं की जम कर जेब काटी जा रही है. सुरक्षा और समय की पाबन्दी के नाम पर लालू जी और लालू जी की रेल जीरो हैं. रेल कब आएगी और कब जायगी, यह आ जाने और पहुँच जाने के बाद ही पता लगता है. यात्री सुरक्षित पहुँच जायेंगे इनके बारे में भी पहले से कुछ नहीं कहा जा सकता.
रेल सेवाएं सरकार उपलब्द्ध कराती है. एक सरकारी महकमा होने के नाते रेल विभाग का मुख्य उद्देश्य एक बहुत अच्छे स्तर की सेवा प्रदान करना होना चाहिए, प्रोफिट कमाना नहीं होना चाहिए. रेलों को नो-प्रोफिट-नो-लोस के सिद्धांत पर चलाना चाहिए. पर लालू जी की रेल केवल फायदा कमाने के लिए चलती है. यात्रिओं को एक समय-बद्ध, सुरक्षित, आरामदायक सेवा मिले इस से लालू जी को कोई मतलब नहीं है.
दिल्ली हाई कोर्ट ने एक पेनल बनाईं जिसको रेल प्लेटफार्म्स पर सप्लाई किए जा रहे खाद्य पदार्थों की क्वालिटी की जांच करके रिपोर्ट देने को कहा गया. तीन रेल स्टेशन, पुरानी और नई दिल्ली और हजरत निजामुद्दीन इस जांच के लिए चुने गये. जांच के बाद एक पेनल सदस्य ने कहा कि आज के बाद में रेल द्वारा सप्लाई की गई कोई बस्तु न तो खा सकूंगा और न ही पी सकूंगा. किचिंस में चूहों और क्राक्रोचों कि भरमार थी. कोई भी सिस्टम नहीं था न कच्चा माल खरीदने और स्टोर करने का, खाना बनने का या सर्व करने का. कर्मचारिओं का कोई मेडिकल चेक अप नहीं होता था. ले दे कर जांच रिपोर्ट बहुत ही गड़बड़ थी. एक दिन इस के बारे में अखबार में ख़बर आई और तुरंत ही गायब हो गई. मीडिया ऐसे मौकों पर सरकार की बहुत मदद करता है. कोका कोला पर शोर मचाने वाले लालू जी के खाद्द्य और पेय पदार्थों के बारे में चुप रहे.
आई आर सी टी सी भारतीय रेलों में खाद्द्य और पेय पदार्थों की सप्लाई के लिए ठेके देता है. एक बार में कालका शताब्दी में सफर कर रहा था. जो खाना सर्व किया गया बहुत ही ख़राब था - ठंडा और बेजायका. पता नहीं ग़लत है या सच है - एक सज्जन ने मुझे बताया कि एक शताब्दी या राजधानी एक्सप्रेस में यह ठेका एक करोड़ की रिश्वत देने पर मिलता है. देहरादून और कालका शताब्दी का मेरा अनुभव मुझे इसे सच मानने को मजबूर करता है. दो बार मैंने शिकायत की पर कोई कार्यवाही नहीं की गई.
लालू जी की एक और देन है रेल यात्रियों को. अब यात्रियों की शिकायतों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता. मैंने ताज एक्सप्रेस में तीन बार टीटी द्वारा सप्लाई की गई शिकायत पुस्तिका में शिकायत लिखी पर कुछ नहीं हुआ. देहरादून शताब्दी, कालका शताब्दी, लखनऊ शताब्दी और श्रमजीवी एक्सप्रेस में लिखी शिकायतों पर कोई कार्यवाही नहीं हुई.
अभी पिछले दिनों मैंने हावड़ा-एहमदाबाद एक्सप्रेस में यात्रा की. तत्काल में टिकट ख़रीदा. मुझे झरसागुडा तक जाना था पर एहमदाबाद तक टिकट खरीदना पड़ा. बहत तगड़ी जेब कटी. वापसी आजाद हिंद एक्सप्रेस से हुई. इसमें भी तत्काल से टिकट लिया. पर इस बार एहमदाबाद से नहीं, राजनांदगांव से किराया भरना पड़ा. यहाँ भी जेब कटी.
अब बात करें इन सुपरफास्ट एक्सप्रेस रेलों की समय पाबन्दी की. हावड़ा से रेल ११५५ पर छूटती है. पर उस रात यह रेल १२३० के बाद प्लेटफार्म पर आई. बहुत गर्मी थी उस रात. हालत ख़राब हो गई. करीब दो घंटा देर से झरसागुडा पहुँची. जिस मीटिंग के लिए मैं गया था वह दो घंटा देर से शुरू हो पाई. लालू जी के कारण लगभग ३५ लोगों को परेशानी हुई. वापसी में आजाद हिंद एक्सप्रेस दो घंटा लेट आई और हावड़ा पहुँचते पहुँचते चार घंटे से ज्यादा लेट हो गई. ०३५५ की जगह यह ०८३० के बाद हावड़ा पहुँची. मेरी दिल्ली की फ्लाईट ०८२० पर थी, वह छूट गई. किराया वापस नहीं हुआ. दूसरी फ्लाईट में टिकट लेना पड़ा. लालू जी की मेहरबानी से ४५०० रुपए का चूना लगा और देर से घर पहुँचा सो अलग.
लालू जी की आज कल बहुत तारीफ़ हो रही है. उन्होंने घाटे में चल रही रेल को फायदे में ला दिया. मेनेजमेंट वाले उन्हें हार पहना रहे हैं. पर मेरे व्यक्तिगत अनुभव से भारतीय रेल एक बहुत ही घटिया रेल सेवा है. इस में यात्रियों के लिए कुछ नहीं है. काश भारत में एक रेल सेवा और होती. कोई तो विकल्प होता यात्रियों के सामने. आपने जाना है तो लालू जी की रेल ही लेनी होगी. जेब कटवा कर देर से पहुचंगे.
Tuesday, May 13, 2008
क्या निजीकरण जनताकरण नहीं है?
हम ग़लत थे. निजीकरण का मतलब जनताकरण नहीं होता. विजली 'जब चाहे चली जाए' वाली बात अब् भी है. विजली की कीमत मर्जी से अब् भी बढ़ा दी जाती है. कोई सुधार नहीं हुआ. सब कुछ बैसे का बैसा है. अन्तर है सिर्फ़ शीला दीक्षित के लिए. अब् वह सारी जिम्मेदारी निजी कम्पनियों पर डाल सकती हैं. जनता की नजरों में अच्छा बनने के लिए निजी कम्पनियों को डांट लगा सकती हैं. उनके घर में विजली कभी नहीं जाती. दिल्ली का वी आई पी एरिया विजली कटौती की चपेट में न पहले था और न अब् है. पहले भी आम आदमी ही तंग था और आज भी आम आदमी ही तंग है.
सरकारी निजीकरण मुर्दाबाद. जनता को जनताकरण चाहिए.
शिकायत करो और भाड़ में जाओ
आपका शिकायत करना जायज है. संविधान ने आपको शिकायत करने का पूरा अधिकार भी दिया है. पर आप दूसरों के उस अधिकार को नजरअंदाज नहीं कर सकते, जिस के अंतर्गत वह यह सब कर सकते हैं. यह अधिकार आता है उस सोच से जो कहता है - 'अरे यार यहाँ सब चलता है'. इस सोच के आगे संविधान भी हाथ खड़े कर देता है.
बहुत से संस्थान शिकायत सुन तो लेते हैं, पर कुछ करते नहीं. कुछ बड़े सेवा संस्थान शिकायत को शिकायत न मानकर सुझाव के रूप में दर्ज कर लेते हैं और बड़े गर्व से कहते हैं कि हमारे यहाँ कोई शिकायत नहीं आती. कुछ और बड़े सेवा संस्थान शिकायतों से निपटने के लिए कम्पूटर लगा देते हैं. आप शिकायत करते हैं और यह कम्पूटर उसे एक नंबर दे देता है और कुछ समय बाद बंद कर देता है. कोई एक्शन न होने पर आप फ़िर शिकायत करते हैं या पहली शिकायत का रिमाइंडर देते हैं. यह कम्पूटर फ़िर एक नया नंबर दे देता है और कुछ समय बाद उसे बंद कर देता है. यह सिलसिला चलता रहता है और कुछ समय बाद आप थक कर शिकायत करना बंद कर देते हैं. कुछ संस्थान अपने और आपके बीच में काल सेंटर खड़ा कर देते हैं और मस्ती की नींद सोते हैं. आप निपटते रहिये काल सेंटर वालों से. पुलिस की बात करें तो वह शिकायत दर्ज करने से बचने में एक्सपर्ट हैं. अक्सर पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के लिए अदालत में जाना पड़ता है.
आम तौर पर जनता को सरकार से शिकायत होती है. पर अब सरकार भी जनता की शिकायत करती है. पिछले दिनों दिल्ली के उपराज्यपाल ने दिल्ली के कुछ लोगों की शिकायत की थी. हल्ला मच गया तो शिकायत को सुझाव कह दिया गया. नेता लोग तो हमेशा ही दूसरे नेताओं और पार्टियों की शिकायत करते रहते हैं. इन शिकायतों का कोई अर्थ नहीं होता, बस वह राजधर्म का पालन करने के लिए की जाती हैं.
दूसरी तरफ़ कुछ लोग आपके सुझाव को शिकायत मान लेते हैं और बुरा मान जाते हैं. अगर आपने कुछ ज्यादा सुझाव दे दिए तो आप के बारे में यह कहा जाने लगता है कि, 'यार यह आदमी हर समय शिकायत ही करता रहता है'. आप लाख कहें कि मैं शिकायत नहीं कर रहा हूँ पर कोई आपकी बात नहीं सुनता.
सबसे मजेदार बात यह है की लोग सिर्फ़ दूसरों की शिकायत करते हैं. ख़ुद की शिकायत कोई नहीं करता. अगर आप ईमानदारी से किसी मसले को देखें तो पाएंगे कि उसमें शिकायत तो आपके ख़ुद के ख़िलाफ़ बनती है. क्या आपने कभी अपने ख़िलाफ़ शिकायत की है? यदि नहीं तो करके देखिये. कुछ नया ही अनुभव मिलेगा.
एक कहावत है - "शिकायत करो और भाड़ में जाओ". क्या कहा, आपने नहीं सुनी आज तक यह कहावत? अरे भाई सुनेंगे कहाँ से. अभी अभी तो लिखी है मैंने. बैसे एक बात बताइये, क्या आप ख़ुद नहीं कहते हें, शिकायत करो और भाड़ में जाओ?
Monday, May 12, 2008
लालूजी की रेलों में सफाई प्रतियोगता
आपको शायद याद हो, कुछ वर्ष पहले लालूजी ने बजट भाषण के दौरान प्लेटफार्मों पर सफाई प्रतियोगता का एलान किया था. जो प्लेटफोर्म साफ पाए जाएँगे उन्हें पुरूस्कार मिलेगा. पर ऐसा कुछ हुआ नहीं. अगले वर्षं के बजटों में इस का कोई जिक्र भी नहीं किया उन्होंने. शायद बजट भाषण के बाद उन्होंने सफाई प्रतियोगता को गंदगी प्रतियोगता के रूप में बदल दिया. शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेंस में नए डिब्बे लगे हैं, पर शौचालय गंदे रहते हैं. तरल साबुन की जगह सादा पानी भर दिया जाता है. पूरी यात्रा के दौरान कोई सफाई कर्मचारी नजर नहीं आता.
लालूजी बातें बहुत करते हैं. उनकी तारीफ़ भी बहुत की जाती है कि उन्होंने रेल का कायाकल्प कर दिया है. पर में जब भी सफर करता हूँ मुझे सामान्य सफाई भी नजर नहीं आती. गंदे डिब्बे, गंदे शौचालय, गंदे प्लेटफार्म, रेल लाइनों पर गंदगी, यह लालूजी का रेल ब्रांड है.
समय की पाबन्दी!! यह क्या चीज है?
आज के अखबार में एक समाचार है - लालूजी सिंगापुर जाकर वहाँ के मैनेजमेंट स्टूडेंट्स को भारतीय रेल की महान सफलताओं के बारे में बतायेंगें. लेकिन रेलों के देर से चलने से देश को कितनी आर्थिक हानि हुई है इसका जिक्र वह नहीं करेंगे. जितना फायदा लालूजी दिखायेंगे वह उस नुकसान से बहुत कम होगा जो उन्होंने देश को पहुँचाया है. अगर हम उनसे इस बारे में बात करें तो मुझे विश्वास है कि उनका जवाब होगा - ""यदि आप समय पर अपने गंतव्य पर पहुँचना चाहते हैं तब भारतीय रेल से यात्रा न करें. समय की हमारे लिए कोई कीमत नहीं है".
पिछले सप्ताह मैं उड़ीसा में झरसागुडा गया था. दिल्ली से कोलकाता तक हवाई यात्रा और वहाँ से रेल. हावड़ा-अहमदाबाद एक्सप्रेस का छूटने का समय है ११.५५, पर यह ट्रेन १२.३० पर पलेटफ़ामॅ पर लगाई गई. गर्मी से बुरा हाल हो गया. आधा घंटा ट्रेन लेट चली और दो घंटा देर से पहुँची. जिस कार्य के लिए मैं गया था वह देर से शुरू हो पाया. इक्कीस लोग मेरे देर से पहुँचने से परेशान हुए. और इस सबके लिए कौन जिम्मेदार था, लालूजी और उनका मंत्रालय.
वापसी में मेरा रिज़र्वेशन आज़ाद हिंद एक्सप्रेस में था. यह ट्रेन लगभग दो घंटा बिलंब से आई. रास्ते में और बिलंब हुआ और यह ट्रेन ०८.३२ पर हावड़ा पहुँची. इसका सही समय है ०३५०. कोलकाता से मुझे ०८.२० की फ्लाईट लेनी थी पर वह मिस हो गई. टिकट बेकार गया. ११.३५ की फ्लाईट से नया टिकट लेना पड़ा. लालूजी के कारण मुझे ४५०० रुपए का नुकसान हुआ. देर से दिल्ली पहुँचा. घर वाले बहुत परेशान हुए. देवी माँ की कृपा से अगली फ्लाईट में जगह मिल गई वरना न जाने कितनी परेशानी उठानी पड़ती. इस सबके लिए कौन जिम्मेदार था, लालूजी और उनका मंत्रालय. पर लालूजी को तो हार पहनाये जा रहे हैं.
किसे चिंता है ग्राहक की?
Saturday, March 15, 2008
शुद्ध जल पूर्ति का जन अधिकार
दिल्ली जल बोर्ड की जिम्मेद्दारी है दिल्ली निवासिओं को सुरक्षित और पूरी मात्रा मैं पीने योग्य जल सप्लाई करना. इस काम मैं बोर्ड हमेशा नाकामयाब रहा है. अभी केंद्रीय सरकार ने भी माना है की दिल्ली मैं सप्लाई किया जा रहा पानी सब-स्टैंडर्ड है. लेकिन एक सरकारी मंत्री के अनुसार सरकार के पास पानी पर टैक्स लगाने के अलाबा पानी की गुणवत्ता सुधारने की या तो कोई काबलियत नहीं है या उस का ऐसा कोई इरादा नहीं है. दिल्ली की मुख्य मंत्री को तो अखवार मैं अपने फोटो छपबाने से ही फुरसत नहीं मिलती. आज के अखबार मैं भी, जनता के पैसे से छपबाये गए, कई ऐसे विज्ञापन हैं जिन मैं उनका फोटो छापा गया है.
भारतीय मानक ब्यूरो ने सुरक्षित पीने योग्य पानी का मानक बना रखा है पर दिल्ली जल बोर्ड मैं समय-समय पर शायद पानी की टेस्टिंग करबाने का कोई सिस्टम नहीं है. इस मानक का नुम्बर है - आई एस १०५०० - और इस मानक मैं पानी के बहुत सारे टेस्ट दिए गए हैं. यदि इस मानक के अनुसार पानी समय-समय पर टेस्ट करबाया जाए और कोई कमी पाए जाने पर उचित कार्यवाही की जाए तब दिल्ली के निवासी शुद्ध पानी पी सकेंगे और अनेक वीमारिओं से छुटकारा पा सकेंगे.
१५ मार्च, विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस वर्ष भी मनाया गया। सरकार ने विज्ञापन छापे और अपने कर्तव्य की इतिश्री की। क्या दिल्ली जल बोर्ड और दिल्ली सरकार अपने उपभोक्ताओं के शुद्ध जल की आपूर्ति के अधिकार का हनन बंद करेगी?
Thursday, March 13, 2008
Safety in hospitals
People go to hospitals to get well. If they get well then their good luck should get more credit than the efforts of doctors and hospital administration & staff. We have been hearing stories about wrong treatment and delayed treatment.But now there are news about safety also. A prematurely-born five day old girl was charred to death as the warmer, in which she was being treated for jaundice, was not safe. I short circuit in the warmer sparked a fire. This bizarre incident happened in Bhagwan Mahavir Hospital in Pitampura in New Delhi on Wednesday. The hospital is run by Delhi Government, whose CM and Health Minister keep busy in getting their photos published in advertisements financed by public money.
Timely warnings by the mother of the girl were not taken seriously by the staff. Even after they rushed to the scene, they did not try to save he girl, but were only busy in dowsing the fire. Lack of safety in appliances used in the hospitals has become a cause for a death.
Another death due to short circuit in phototherapy machine was caused in Shardaben General Hospital in Ahmedabad, where a three year old baby was being treated.
Tuesday, March 11, 2008
Is Prime Minister a customer?
I wonder whether Prime Minister also faces these problems. Is he a customer like me and suffers like me? Or service providers consider serving him a privilege? Is Sonia Gandhi or any other VIP treated like an ordinary customer and made to suffer like me?
It is said that India is a democracy. It is also said that in a democracy all are equal. But it is not true in Indian democracy. Will a day come in Indian democracy, when Prime Minister will also suffer due to long power & water cuts like me?
Tuesday, January 01, 2008
Bring love back in our lives
In 2007 we have seen love loosing to hate, peace loosing to violence. We should stop and ponder. Are we going to allow this to continue or we should do something to reverse the trend?
If we want that in year 2008, love should emerge victorious over hate and peace over violence then we need to bring love back in to our lives. My friends wonder where the love has gone. I wonder too. Has love really gone out of our lives or it is still there within our hearts but has been covered by greed which brought hate and violence to the front? Whatever is the situaion we should re-discover love. Without love we cease to be human beings.
Every year people make new resolutions. I also do. Last year I made a resolution to develop positive attitude towards life and people. I succeeded to some extent. I continue with this resolution for year 2008 also.
This year I make a new resolution to bring love back in our lives. Let love be victorious on hate. Let peace be victorious on violence.
I have many wishes too (list is very long. Here are some):
No deaths under blue line buses.
No killings of senior citizens.
No child abuse.
No violence against women.
No road rage.
No police brutality on innocent citizens.
No exploitation of and discrimination against any citizen.
No customer harassment.
No terror killings.
No photos of ministers on public ads.
HAPPY NEW YEAR TO ALL.